एक पुरानी कविता | अकाल और उसके बाद

कविताएँ कभी पुरानी नहीं होतीं, भले ही उनके संदर्भ बदल जाएँ। जब भी हम इस कविता को पढ़ेंगे, तो हमारे दिमाग में गाँव के अकाल की नहीं, बल्कि 2020 के कोविड महामारी के बाद की तस्वीरें आएँगी।

कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास,
कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उनके पास।

कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त,
कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त।

दाने आए घर के अंदर, कई दिनों के बाद,
धुआँ उठा आँगन से ऊपर, कई दिनों के बाद।

चमक उठी घर भर की आँखें, कई दिनों के बाद,
कौए ने खुजलाई पाँखें, कई दिनों के बाद!

बाबा नागार्जुन

अकाल एक ऐसी समस्या थी, जो सिर्फ गाँवों में आती थी—अक्सर सूखा पड़ने या फिर बाढ़ आने के बाद। हमारे देश के लगभग छह लाख गाँवों के लिए यह कोई नई बात नहीं थी। लेकिन साल 2020 के बाद अकाल की परिभाषा ही बदल गई। गाँव से मजदुर शहर आ गए थे तो अकाल क्यों नहीं आएगी उनके साथ ? अकाल भी गाँवों से चलते-चलते शहरों तक आ पहुँचा था—क्योंकि अकाल सिर्फ मज़दूरों और किसानों के घरों में ही पलता है और उन्हें ही अपना निशाना बनाता है।

साल 2020 में कोविड महामारी के आने के बाद, बाबा नागार्जुन की यह कविता हमें अकाल का सजीव चित्रण दिखाती है—वह अकाल, जिसे हमने अपनी आँखों से देखा और जिसे मज़दूरों ने शहरों में महसूस किया।

कविताएँ कभी पुरानी नहीं होतीं, भले ही उनके संदर्भ बदल जाएँ। जब भी हम इस कविता को पढ़ेंगे, तो हमारे दिमाग में गाँव के अकाल की नहीं, बल्कि 2020 के कोविड महामारी के बाद की तस्वीरें आएँगी।

गाँव के अकाल की तस्वीर आपके ज़ेहन में शायद किसी फिल्म से चुराई होगी, है न? अब गाँव के लोग बचे ही कितने हैं! खैर…चलिए, अब आप हमें बताइए—इस कविता को पढ़ने के बाद आपके मन में क्या आया? क्या आपके दिमाग में कोविड महामारी की तस्वीरें उभरीं, या गाँव में पड़ने वाले सूखे और अकाल की? या फिर कुछ और? हो सकता है, भाई, कि यह कविता तुम्हें किसी डरावनी भूतिया फिल्म के सेट जैसी लगे!

क्यों न हम अपने सगे -संबधियो से इस कविता के बारे में बात करे ? चलो, एक काम करते हैं—इस कविता को अपने दादा-दादी या नाना-नानी को सुनाइए और उनसे पूछिए कि उन्हें क्या महसूस हुआ। क्या उन्हें पहले से इस कविता के बारे में पता था? क्या वे बाबा नागार्जुन को जानते थे? और भी कई सवाल हो सकते हैं, है न?

तो चलिए, थोड़ा विराम लीजिए सोशल मीडिया से और इस कविता पर बात कीजिए। और अगर कुछ दिलचस्प निकलकर आए, तो हमें बताइए—हम यहाँ सबके साथ उसे साझा करेंगे |

जीवनी : श्री वैद्यनाथ मिश्र ‘नागार्जुन’ का जन्म बिहार के मधुबनी जिले के सतलखा ग्राम में सन् 1911 ई. में हुआ था। उनका प्रारंभिक जीवन अभावों से भरा हुआ था। जीवन की इन्हीं कठिनाइयों ने आगे चलकर उनके संघर्षशील व्यक्तित्व का निर्माण किया। व्यक्तिगत दुःख ने उन्हें मानवता के दुःख को समझने की क्षमता प्रदान की। उनके जीवन की यही संवेदना उनकी रचनाओं में मुखर रूप में प्रकट होती है।

Author Profile

Kumar is a content creator and stand up comedian.

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