Poems
एक पुरानी कविता | मुझे देवों की बस्ती से क्या
मैं मजदूर हूँ मुझे देवों की बस्ती से क्या!अगणित बार धरा पर मैंने स्वर्ग बनाये, अम्बर पर जितने तारे उ…
Guess the book
Guess the book
Death was the sentence reserved for everyone of them, for all those who rejected a society of spinel…
Poems
हम गिरेंगे
मजदूर ज़्यादा गिरता इससे पहले ही मर गया, इस मरने पर कुछ आवाज़ ज़िंदा हुई, कुछ कलम ऊपर आये कुछ टेलीव…
Short stories
अधूरी पूर्णिमा
पूर्णिमा जब कोठियों की ओर जाने के लिए बस्ती की टेढ़ी-मेढ़ी गलियों से निकलती, तो रास्ते में इधर-उधर ल…