
Art by Arpita
किताब के कुछ अंश :
कमरे में आकर रघुवीर प्रसाद को अपनी शादी का निमंत्रण- पत्र पढने का मन हुआ | शादी हुए बारह दिन हो गए थे | निमंत्रण – पत्र खटिया के निचे पेटी में था | पेटी निकालने के लिए वो निचे झुके | उन्होंने सुना ‘ग में छोटे उ की मात्रा गुडिया’ ! खिड़की की तरफ उन्होंने देखा एक बच्चा और बच्ची दोनों की ऊँचाई बराबर थी | खिड़की के निचे की चौखट तक दोनों की ठुड्डी थी | रघुबीर प्रसाद ने उन्हें देखा तो वो दोनों मुस्कुराये | फिर दोनों हँसने लगे | उनकी हंसी सुनकर निचे बैठी हुई गुडिया नाम की लड़की भी खड़ी हो गयी | रघुवीर प्रसाद ने उसे देखर कहा “ब में छोटी उ की मात्रा बुढिया |“
“ नहीं ! ग में छोटी उ की मात्रा गुडिया |”
“नही ! ब में छोटी उ की मात्रा बुढिया | अच्छा ! तुम लोग आब जाओ |” तभी तीनो बच्चे खिड़की से गायब हो गए |
…
तीन सूअर तीन साइकिलो के कैरियर में बंधे हुए थे | चौथी साईकिल के कैरियर में एक टोकनी में छोटा बकरा बंधा था | बकरा ले जाने वाला देवार डेरे का आदमी नहीं लगता था | सभी साइकिलो को पैदल ले जाया जा रहा था | एक बूढ़े देवार के पीछे मरियल कुत्ता निश्चित दुरी बनाये हुए साथ जा रहा था | या कुत्ता बंधा नहीं था पर अद्रिश्य रस्सी से बंधा जा रहा था | अद्रिश्य रस्सी पालतू होने की नियति थी |
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रघुवीर प्रसाद फिर रिक्शे वाले से कहेंगे – ‘आकाश की तरफ ले चलो’ | फिर सोचेंगे आकाश की तरफ बहुत चढ़ाई करनी पड़ेगी | तब वे रिक्शा वाले से कहेंगे – तुम रहने दो यही हमारा रास्ता देखना | मैं रिक्शा ले जाता हूँ | अपनी पत्नी को रिक्शा चलाते हुए वे आकाश की ओर ले जायेंगे | पैंडल मारेंगे और ऊँचे चढ़ जायेंगे | ऊपर बादल के टूकड़े रिक्शे पर लद जायेंगे | बादल का कोई वजन नहीं होता | किसी बादल में लोगो को न दिखने के लिए दशहरा के दिन नीलकंठ बैठा हुआ दिख जाएगा | पत्नी को दिखायेंगे – ‘सोनसी’, देखो नीलकंठ पेड़ पर दिखा जाएगा इसीलिए यहाँ भूरे बादल पर आकर बैठ गया | तुम भी देखो |
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“तुम्हारे कंधे पर चंद्रमा बैठा हैं |” सोनसी ने लेटे – लेटे हाथ उठाते हुए कहा | जैसे वह रघुवीर प्रसाद को बुला रही हो और रघुवीर प्रसाद बहुत दुरी पर थे | रघुवीर प्रसाद खड़े – खड़े सोनसी को देख रहे थे | सोनसी को लगा रघुवीर प्रसाद के कंधे पर बैठा चंद्रमा पास आ रहा हैं | सोनसी ने पास आने के सुख की चमक को सहने के लिए आँख मूँद लिए थे |
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“मैं देख रहा हूँ कि साईकिल खिड़की से निकल सकती हैं या नहीं |” सोनसी ने भी हैंडिल पकड़कर खिड़की से सामने का चक्का निकालने की कोशिश की | चक्का अटकता था | खिड़की थोड़ी और बड़ी होती तो साईकिल निकल जाती |
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“छुपकर बीडी क्यों पिता हैं ? “ सोनसी ने पूछा |
“ददा मारता हैं |”
“मत पिया कर |” सोनसी ने समझाया | ट्ठुलिया में उसका भात ख़त्म हो गया था | वह सर झुकाए नमक चाट रहा था |
“ भात और दू ?”
“हाँ ! दे दो |” उसने कहा | उसे बहुत भूख लगी थी |
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रात भर अँधेरे का इतना साथ था कि दिन का उजाला बहुत उजाला लग रहा था | लगा की एक सूर्य से इतना उजाला नहीं हो सकता, दो सूर्य होंगे |
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लेखक का परिचय
लेखक का जन्म 1937 में हुआ था। लेखक भारतीय हिंदी साहित्य के एक अत्यंत समादृत हस्ताक्षर हैं। उन्होंने कविता और कथा में स्वयं को साधते हुए एक ऐसी अभूतपूर्व भाषा संभव की, जिसमें अचरज, सुख और सरोकार साथ-साथ चलते हैं—बिना पठनीयता को बाधित किए। उनके दस कविता-संग्रह, छह कहानी-संग्रह और छह उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। बाल-किशोर साहित्य में भी उन्होंने रोचक रचनाएँ संभव की हैं।
संसार की लगभग सभी बड़ी भाषाओं में उनकी रचनाएँ अनूदित हो चुकी हैं। वे रंगमंच और सिनेमा में उतरकर भी प्रशंसित और पुरस्कृत हो चुके हैं। उन्हें ‘गजानन माधव मुक्तिबोध फ़ेलोशिप’, ‘राष्ट्रीय मैथिलीशरण गुप्त सम्मान’, ‘शिखर सम्मान’ (म.प्र. शासन), ‘हिंदी गौरव सम्मान’ (उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान), ‘रज़ा पुरस्कार’, ‘दयावती मोदी कवि शेखर सम्मान’, ‘रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार’ जैसे कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।
प्रस्तुत कहानी के लिए उन्हें साहित्य अकादेमी पुरस्कार मिला है। हाल ही में उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ है। उन्हें वर्ष 2023 में अंतरराष्ट्रीय साहित्य में उपलब्धियों के लिए प्रतिष्ठित पेन/नाबोकोव पुरस्कार (PEN/Nabokov Award) से सम्मानित किया गया है।
लेखक की लेखन शैली को उनकी सादगी, मौलिकता और गहरी संवेदनशीलता के लिए जाना जाता है। वे साधारण जीवन के असाधारण पहलुओं को अपनी रचनाओं में उभारते हैं। उनकी भाषा सहज और सरल होती है, लेकिन उसमें छिपी गहराई पाठकों को सोचने पर मजबूर करती है। उनकी रचनाओं में प्रकृति, मानव जीवन और समाज के बीच एक अनोखा संवाद देखने को मिलता है।
उनका प्रभाव हिंदी साहित्य में अत्यंत गहरा है। उन्होंने समकालीन हिंदी कविता और कथा-साहित्य को नई दिशा दी। उनकी रचनाओं ने न केवल पाठकों को प्रभावित किया, बल्कि आलोचकों को भी एक नई दृष्टि प्रदान की। वे अपनी पीढ़ी के उन दुर्लभ लेखकों में से हैं जिन्होंने साहित्य में नई आलोचना दृष्टि को प्रेरित किया।
लेखक साहित्यिक चकाचौंध से दूर एक सादा जीवन जीते हैं। वे रायपुर, छत्तीसगढ़ में रहते हैं और अपनी जड़ों से गहरे जुड़े हुए हैं। तकनीक और आधुनिकता से उनका रिश्ता सहज नहीं रहा, लेकिन उनकी लेखनी में आधुनिक मनुष्य की जटिल आकांक्षाओं का सजीव चित्रण मिलता है। वे मानते हैं कि लेखन उनके लिए एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, जो उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा है।
लेखक और किताब का नाम यहाँ पर क्लीक कर के जान सकते हैं |
Kumar is a content creator and stand up comedian.