Poems

एक पुरानी कविता | मुझे देवों की बस्ती से क्या

मैं मजदूर हूँ मुझे देवों की बस्ती से क्या!अगणित बार धरा पर मैंने स्वर्ग बनाये, अम्बर पर जितने तारे उतने वर्षों से,मेरे पुरखों ने धरती का रूप सवारा; धरती को सुन्दर करने की ममता में,बीत चुका है कई पीढियां वंश हमारा Ι अपने नहीं अभाव मिटा पाए जीवन भर,पर औरों के सभी अभाव मिटा सकता […]

Guess the book

Guess the book

Death was the sentence reserved for everyone of them, for all those who rejected a society of spineless, opportunist time-servers masquerading as artists, writers and intellectuals. 

Poems

हम गिरेंगे

मजदूर ज़्यादा गिरता इससे पहले ही मर गया,
इस मरने पर कुछ आवाज़ ज़िंदा हुई,
कुछ कलम ऊपर आये
कुछ टेलीविजन ने भी शोर मचाये
कुछ ने की शोक सभाएं…

Short stories

अधूरी पूर्णिमा

पूर्णिमा जब कोठियों की ओर जाने के लिए बस्ती की टेढ़ी-मेढ़ी गलियों से निकलती, तो रास्ते में इधर-उधर लेटे कुत्तों के झुंड उसे ऐसे देखते जैसे वह उनके ही परिवार का हिस्सा हो। वे सब साथ-साथ उसी बस्ती में रहते थे। रात के अंधेरे में भी ये कुत्ते …

Photo essay

The daily waiting game

The number of labour chowks, or nakas, is rapidly increasing along with the city’s expansion—a clear indication of the rising demand for labour. It is on the peripheries of places like Thane, Kalyan, Navi Mumbai, and Virar-Vasai that new chowks are emerging.

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