एक पुरानी कविता | मुझे देवों की बस्ती से क्या
मैं मजदूर हूँ मुझे देवों की बस्ती से क्या!अगणित बार धरा पर मैंने स्वर्ग बनाये, अम्बर पर जितने तारे उतने वर्षों से,मेरे पुरखों ने धरती का रूप सवारा; धरती को सुन्दर करने की ममता में,बीत चुका है कई पीढियां वंश हमारा Ι अपने नहीं अभाव मिटा पाए जीवन भर,पर औरों के सभी अभाव मिटा सकता […]