Short stories

Short stories

कागज़ का गुलाब

मौका ही नहीं होता था बात करने का। जब तक वह लड़की अख़बार लेने बालकनी में आती, तब तक राजू नीचे जा चुका होता। इन दोनों की ओर से मानो डोरबेल ही एक-दूसरे से बात करती थी…

Short stories

अधूरी पूर्णिमा

पूर्णिमा जब कोठियों की ओर जाने के लिए बस्ती की टेढ़ी-मेढ़ी गलियों से निकलती, तो रास्ते में इधर-उधर लेटे कुत्तों के झुंड उसे ऐसे देखते जैसे वह उनके ही परिवार का हिस्सा हो। वे सब साथ-साथ उसी बस्ती में रहते थे। रात के अंधेरे में भी ये कुत्ते …

Short stories

तीन साल बाद गोपाल मिला !

“चलो चाय पीते है?” मैंने उससे कहा और बाहर लगी बैंच पर बैठ गए। बैठते हुए मैनें उसके पहनावे को ध्यान से देखा। व्यवस्थित जींस की पेन्ट और सही माप का शर्ट । सच कहूं तो गोपाल बहुत जंच रहा था। चाय का आर्डर देने के बाद मैं गोपाल की ओर मुखातिब हुआ- “कहां थे इतने समय, कभी मिले ही नहीं उसके बाद।”

Short stories

हम खेलते नहीं, सिर्फ खेलने के लिए…

खेल के प्रति हमारी सच्चाई इसी बात से समझी जा सकती है कि हमारे पास खेल की सारी वस्तुएँ और समय न होने के बावजूद, हम अपने आसपास की चीज़ों से ही क्रिकेट का बैट, बॉल, पूरा स्टेडियम और खेलने के लिए दो टीमें बना लेते हैं। हमारा जनरेटर के तेल का डब्बा विकेट बन जाता है, फावड़ा हमारा बैट, और निर्माण स्थल हमारा स्टेडियम।

Scroll to Top