Poems

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पत्थर से जिस्म का तोल

हमारी कमजोरियों को सिखावटी झोल में घोलकर,
हमें कटपुतली बनाते हैं।
ये कार्य करो तो सम्मान, न करो तो घृणा की नज़रों से देखा जाता है।

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एक पुरानी कविता | मुझे देवों की बस्ती से क्या

मैं मजदूर हूँ मुझे देवों की बस्ती से क्या!अगणित बार धरा पर मैंने स्वर्ग बनाये, अम्बर पर जितने तारे उतने वर्षों से,मेरे पुरखों ने धरती का रूप सवारा; धरती को सुन्दर करने की ममता में,बीत चुका है कई पीढियां वंश हमारा Ι अपने नहीं अभाव मिटा पाए जीवन भर,पर औरों के सभी अभाव मिटा सकता

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हम गिरेंगे

मजदूर ज़्यादा गिरता इससे पहले ही मर गया,
इस मरने पर कुछ आवाज़ ज़िंदा हुई,
कुछ कलम ऊपर आये
कुछ टेलीविजन ने भी शोर मचाये
कुछ ने की शोक सभाएं…

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गिनती 

गिनती सिर्फ हमारे हाथों और पैरों की की जाती है,

हमारे सपनों और उम्मीदों की नहीं…

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