गिनती
गिनती सिर्फ हमारे हाथों और पैरों की की जाती है,
हमारे सपनों और उम्मीदों की नहीं…
कविताएँ कभी पुरानी नहीं होतीं, भले ही उनके संदर्भ बदल जाएँ। जब भी हम इस कविता को पढ़ेंगे, तो हमारे दिमाग में गाँव के अकाल की नहीं, बल्कि 2020 के कोविड महामारी के बाद की तस्वीरें आएँगी।