भाषा विवाद
भाषा और लेबर …
मैं मजदूर हूँ मुझे देवों की बस्ती से क्या!अगणित बार धरा पर मैंने स्वर्ग बनाये, अम्बर पर जितने तारे उतने वर्षों से,मेरे पुरखों ने धरती का रूप सवारा; धरती को सुन्दर करने की ममता में,बीत चुका है कई पीढियां वंश हमारा Ι अपने नहीं अभाव मिटा पाए जीवन भर,पर औरों के सभी अभाव मिटा सकता
Death was the sentence reserved for everyone of them, for all those who rejected a society of spineless, opportunist time-servers masquerading as artists, writers and intellectuals.
मजदूर ज़्यादा गिरता इससे पहले ही मर गया,
इस मरने पर कुछ आवाज़ ज़िंदा हुई,
कुछ कलम ऊपर आये
कुछ टेलीविजन ने भी शोर मचाये
कुछ ने की शोक सभाएं…
पूर्णिमा जब कोठियों की ओर जाने के लिए बस्ती की टेढ़ी-मेढ़ी गलियों से निकलती, तो रास्ते में इधर-उधर लेटे कुत्तों के झुंड उसे ऐसे देखते जैसे वह उनके ही परिवार का हिस्सा हो। वे सब साथ-साथ उसी बस्ती में रहते थे। रात के अंधेरे में भी ये कुत्ते …