बाबा ने कहा, “तू टूटना मत !”… पैरों की थिरकन फिर कभी नहीं रुकी

" मुझे लगता है, अगर मैं परफॉर्मेंस के पैसे लेने लगूँ, तो मेरे बच्चे (स्टूडेंट्स) क्या सीखेंगे? उन्हें लगेगा पैसा ही सब कुछ है। मुझे लगेगा मैं अपना डांस बेच रही हूँ। मेरे पास कुछ बहुत ग़रीब बच्चे आते हैं, तो मैं उनसे फ़ीस नहीं लेती।"

पश्चिम बंगाल के हावड़ा ज़िले के बौरिया गाँव की निवासी प्रियंका एक प्रतिभाशाली नृत्यांगना हैं। उनकी उम्र 23 वर्ष है। प्रियंका ने कत्थक, भरतनाट्यम, ओड़िसी, हिप-हॉप, सालसा, रवींद्र नृत्य और कंटेम्पोररी जैसी विभिन्न नृत्य शैलियों में तालीम प्राप्त की है। उनके पिता एक जूट मिल में काम करते हैं, माँ गृहिणी हैं और भाई मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा कर रहा है, साथ ही जूट मिल में भी काम करता है। प्रियंका ने स्नातक तक की पढ़ाई पूरी कर ली है और अब उन्होंने नृत्य को ही अपना पेशा बना लिया है। प्रियंका के इस मज़दूर परिवार ने जिस प्रकार की संघर्षशीलता, स्वतंत्र सोच, करुणा और प्रेम दिखाई है, वह उनके मज़दूर होने की पहचान से कहीं आगे जाता है। ऐसी कहानियों को मज़दूर बस्तियों से आई सफलता की सामान्य कहानियों की तरह कैसे देखा जा सकता है, जब प्रियंका और उनके परिवार का जिया गया जीवन उनके लिए एकदम अनोखा, विशिष्ट और गहराई से जुड़ा हुआ रहा है?

मैं तीन साल की थी जब मैंने डांस करना और सीखना शुरू किया। मैं जिस भी मुकाम पर हूँ, सिर्फ़ अपने माँ-बाबा की वजह से। दोनों का बहुत ज़्यादा सपोर्ट रहा है मेरे पीछे। माँ को बचपन से डांस का शौक था, और बाबा जिम्नास्टिक करते थे। माँ-बाबा की शादी तब हो गई थी जब माँ की उम्र बस 14 साल थी, और बाबा 20 साल के थे। माँ ने शादी के बाद ही डांस छोड़ दिया। बाबा जो पंद्रह साल की उम्र से ही जूट मिल में काम कर रहे थे, शादी से कुछ दिन पहले ही जिम्नास्टिक छोड़ चुके थे। मुझे बहुत प्राउड महसूस होता है जब सोचती हूँ कि माँ-बाबा में कितना टैलेंट था। वो पारिवारिक समस्याओं के चलते अपना टैलेंट आगे नहीं बढ़ा पाए। उनका जो सपना अधूरा रह गया, वही सपना मैं पूरा करना चाहती हूँ। तीन साल से तेईस साल का जो सफर है, उसमें कुछ बेहद चुभने वाली यादें हैं। मैं बस पाँच साल की थी, लोग बोलने लगे थे कि मैं बाज़ारू बनना चाहती हूँ, इसलिए डांस करती हूँ। बाबा तो काम पर निकल जाते, माँ सब सुनती थीं। मुझे बहुत गुस्सा आता था, सोचती थी, एक दिन जब मैं बड़ी हो जाऊंगी, सबको दिखा दूंगी कि मैं क्या कर सकती हूँ। बाबा तब कहते थे, "तू टूटना मत! तू अपने बारे में सोच, लोगों की मत सुन। अपना सपना पूरा कर।"

आज मैं जहाँ तक पहुँची हूँ, उसमें मेरी माँ की भूमिका सबसे अहम रही है। मेरी माँ ने विशेष रूप से बहुत संघर्ष किया मुझे एक अच्छा डांसर बनाने के लिए। माँ शादी से पहले राखी पर कारीगरी का काम करती थीं। शादी के बाद उन्होंने दस साल तक साड़ी पर स्टोन लगाने का काम किया। ये काम उन्होंने परिवार चलाने के लिए किया। मैं सोच भी नहीं पाती कि घर संभालने, बाहर के काम, और मुझे दूर-दूर तक ट्रेनिंग के लिए ले जाने जैसे कामों को माँ कैसे कर पाईं। माँ और मेरे बीच दोस्त जैसा रिश्ता है। वो अपना सब कुछ मुझसे साझा करती हैं, और मैं उनसे। बाबा ने भी इन सब में माँ को खूब सपोर्ट किया। जब माँ मुझे डांस सिखाने के लिए कलकत्ता लेकर जाती थीं, खाना घर पर बाबा ही बनाते थे। 

Art by Arpita

बाबा जूट मिल में धागा बनाने की मशीन चलाते हैं। ड्यूटी आठ घंटे की होती है और चार घंटे ओवरटाइम, जो वो रोज़ करते हैं। बाबा ज़्यादा बोलते नहीं हैं। उनके पास एक चप्पल तक नहीं होती थी, छत से पानी टपकता था, पर वो अपना सारा कुछ मुझ पर लुटाते थे, ताकि मेरी तालीम अच्छी तरह से हो सके। बाबा कहते हैं, "हर लड़की को आगे बढ़ने की ज़रूरत है, समाज में कौन क्या कहता है, इससे मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता।" बाबा को मिल में काम करते देख कष्ट होता है। उनके हाथ में बहुत दर्द रहता है। इस काम में रिस्क भी बहुत है, उनकी एक उंगली टूटकर बिखर चुकी है। मैं बाबा से कहती हूँ कि "क्यों करते हो ऐसा काम?", तो वो हँसकर टाल जाते हैं। हम चारों का जो ये परिवार है, हमें लगता है कि हमें किसी और चीज़ की ज़रूरत नहीं है... चाहे कोई भी मुश्किल आए, हम उसका मुक़ाबला कर सकते हैं।

इस समय मेरे पास लगभग तीस बच्चे हैं, जिन्हें मैं डांस सिखाती हूँ। इनमें पाँच-छह साल से लेकर पंद्रह साल तक के बच्चे शामिल हैं। जो बच्चे अच्छा नृत्य सीख लेते हैं, उन्हें मैं टीवी चैनलों के ऑडिशन की तैयारी भी कराती हूँ। साल में मैं दस-ग्यारह बार परफॉर्म करती हूँ। इसमें ज़्यादातर मेरा बच्चों के साथ ग्रुप परफॉर्मेंस होता है। प्रोग्राम चार्जेस के रूप में बस बच्चों को ले जाने-ले आने का खर्चा ही लेती हूँ। मुझे लगता है, अगर मैं परफॉर्मेंस के पैसे लेने लगूँ, तो मेरे बच्चे (स्टूडेंट्स) क्या सीखेंगे? उन्हें लगेगा पैसा ही सब कुछ है। मुझे लगेगा मैं अपना डांस बेच रही हूँ। मेरे पास कुछ बहुत ग़रीब बच्चे आते हैं, तो मैं उनसे फ़ीस नहीं लेती। हावड़ा के जिन गुरु से मैंने सीखा है, उन्होंने मुझसे कभी फ़ीस नहीं ली। जिस समय से मैं निकली हूँ, मैं नहीं चाहती कि ये बच्चे ऐसा दिन देखें। मैं नहीं चाहती पैसे की वजह से कोई अच्छा टैलेंट पीछे रह जाए। डांस सिखाना मेरे लिए बहुत आनंददायक है और इससे मेरी जो थोड़ी-बहुत आमदनी होती है, वह हमारे गरीब परिवार के लिए बहुत ज़रूरी है। इस तरह मैं आज आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हूँ। मैं आगे भी इसी राह पर बढ़ते जाना चाहती हूँ।

यह लेख प्रदीप रॉय जी और अर्पिता के सहयोग से लिखा गया ।

Author Profile
Priyanka

प्रियंका एक डान्सर हैं जिन्होंने  कत्थक, भरतनाट्यम, ओड़िसी, हिप-हॉप, सालसा, रवींद्र नृत्य और कंटेम्पोररी जैसी विभिन्न नृत्य शैलियों में तालीम प्राप्त की है। प्रियंका हावड़ा में  मजदूर और गरीब तबके के बच्चों के लिए एक डांस स्कूल चलाती हैं |

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