पत्थर से जिस्म का तोल

हमारी कमजोरियों को सिखावटी झोल में घोलकर, हमें कटपुतली बनाते हैं। ये कार्य करो तो सम्मान, न करो तो घृणा की नज़रों से देखा जाता है।

Art by Arpita

पत्थरों की टूटती दरारों में हमारे जिस्म का तोल नहीं।
उन ऊँची इमारतों पर हमारे भय का कोई मोल नहीं।
ये अस्फुट कामों से हमारा कोई मेल नहीं,
हमारी कमजोरियों को सिखावटी झोल में घोलकर,
हमें कटपुतली बनाते हैं।
ये कार्य करो तो सम्मान, न करो तो घृणा की नज़रों से देखा जाता है।
इनकी गोपनीय व्यवस्था में हमारा मेहनताना सौ से सवा सौ नहीं बढ़ता,
बदले में हमारे धड़ की आत्मा माँगते हैं।
हम जैसे मानवों का आत्मसम्मान ही नहीं।
फिर भी अथक रहते हैं हम, घुसपैठी जातीय प्रताड़ना से।
क्योंकि साहब, मध्यभाग हमारी आत्मा की परीक्षा ले रहा होता है।
यह उत्पीड़न को सहना ही, परीक्षा की दीवारों को लांघता है।

Author Profile
कुलदीश

कुलदीश पारधी समुदाय से हैं और भोपाल के राजीव नगर बस्ती में रहते हैं। उन्होंने अपनी पढ़ाई टुकड़ों-टुकड़ों में की है। वे एक ऐसे समुदाय से हैं जिसमें शिक्षा का स्तर बहुत ही कम है, और वे अपने परिवार में पहले व्यक्ति हैं जो कॉलेज की पढ़ाई कर रहे हैं। अभी वे माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय से जर्नलिज्म एंड क्रिएटिव राइटिंग की पढ़ाई कर रहे हैं। उन्हें कविता, कहानी और सॉन्ग लिखने में दिलचस्पी है, और कहानी में अकाल्पनिक लेखन, जिसे वास्तविक लेखन में क्रांतिकारी विचार जैसा लेख होता है, जिसमें सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर ज्यादा सोच-विचार आते हैं — ऐसे विचारों को वे अपने डायरी के पन्नों पर लिखते हैं।

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