पिछले महीने, एक लम्बे अरसे के बाद मौका मिला मोटर साइकिल से फील्ड में जाने का। उस दिन बारिश हो रही थी, मौसम खुशनुमा था। ऐसे मौसम में अच्छे विचार जेहन में चल रहे थे। कभी कभी होता है, आप अहसास करते हैं कि आप के पास बहुत सारे बढिया विचार हैं…और जो भी आपसे पहले मिलेगा उसे सब कुछ सुना देंगे। आज भी ऐसा ही कुछ महसुस हो रहा था। रास्ता बारिश की वजह से ज्यादा सलामत नहीं बचा लेकिन विचार बढिया आ रहे थे, इस वजह से झटकों का अहसास कम ही हो रहा था। फील्ड में प्रवासियों के एक समूह के साथ गोष्ठी थी, उसी में हिस्सा लेने जा रहा था मैं।
शहर की सीमा से करीब 17-18 किलोमीटर दूर हाईवे से उतर कर दूसरी सडक पर आया ही था कि दूर सडक किनारे एक लम्बा सा लडका लिफ्ट मांगने की मुद्रा में खडा दिखाई दिया। कुछ मीटर पहले ही मेरी नजर उस पर पड गई थी। एक पल को सोचा रहने देता हूं। फिर सोचा ले लेता हूं। मैं थोडा आगे जाकर रुका। वह दौडते हुए आया और कहने लगा- “मुझे कठार तक जाना है। आप ले चलेंगे तो बढिया रहेगा।” पूरा वाक्य वह बहुत सहजता और शालीनता से बोल गया। एक तो हिन्दी और इतनी स्पष्ट आमतौर इस क्षेत्र में लोग नहीं बोलते। मुझे अचम्भा तो हुआ पर यह भांपने में भी ज्यादा समय नहीं लगा कि यह लडका जरुर किसी शहर का चक्कर लगा कर आया हैं। दक्षिण राजस्थान के आदिवासी बाहुल्य गांवों में 15 से 20 साल के किसी भी लडके को अगर आप आंख मूंद के हाथ लगाये और पूछे कि वह कौन से शहर में जाकर आया है। आपको जो सम्भावित जबाव मिलेगा वो होगा- अहमदाबाद, सूरत या मुंबई।
खैर, मैंने उसे बिठाया और हम चल पडे। मैंनें उससे बात शरु की। उसका नाम-पता पूछने पर लगा जैसे हम पहले भी कहीं मिल चुके हैं। मैंने हेलमेट उतार दिया। वो तपाक से बोला- ”अरे, सर आप? कितने दिनों बाद आपके दर्शन हुए है?“ मैंने भी अब उसे ठीक से पहचान लिया था। गोपाल नाम था उसका। तीन साल पहले जब वो 16 साल का रहा होगा तब उससे एक युवा कार्यशाला के दौरान मुलाकात हुई थी। उस वक्त उसने दसवीं क्लास पास की थी। कार्यशाला के दौरान उसने आगे रहकर बहुत सवाल किए थे अपने भविष्य के बारे में। मसलन, दसवीं के बाद उसे क्या करना चाहिए? कौनसी लाइन चुननी चाहिए? और हमने (टीम) उसे बार- बार यही कहा कि उसे अपनी पढाई जारी रखनी चाहिए। उसे अच्छे विषयों के साथ अपनी गे्जुएशन करनी चाहिए और फिर कोई अच्छा प्रोफेशनल कोर्स करना चाहिए। उसने उस वक्त हमारी बातों को बहुत ध्यान से सुना। कार्यशाला के बाद उससे आज इतने समय बाद मिल कर अच्छा तो लग ही रहा था किन्तु एक उत्सुकता भी थी कि उससे पूछा जाए कि उसने हमारे सुझावों का पालन किया कि नहीं? और अभी वह क्या कर रहा है? लेकिन मोटर साइकिल ड्राइव करते हुए बातों का मजा नहीं आ रहा था। कुछ दूरी पर चाय की एक थडी दिखी तो जाकर वहीं मोटर साइकिल रोक दी।
“चलो चाय पीते है?” मैंने उससे कहा और बाहर लगी बैंच पर बैठ गए। बैठते हुए मैनें उसके पहनावे को ध्यान से देखा। व्यवस्थित जींस की पेन्ट और सही माप का शर्ट । सच कहूं तो गोपाल बहुत जंच रहा था। चाय का आर्डर देने के बाद मैं गोपाल की ओर मुखातिब हुआ- “कहां थे इतने समय, कभी मिले ही नहीं उसके बाद।” बहुत शालीनता से वह बताने लगा- “सर, उसके बाद पढाई तो मैंने आगे नहीं की। काका के साथ सूरत चला गया। अब वहीं टेक्सटाईल मार्केट में काम करता हूं। कल ही सूरत से आया हूं।” मुझे थोडा धक्का सा लगा। एक पल को लगा कि कार्यशाला के दौरान उससे जो भी बातें की गई उनमें से तो उसने एक पर भी अमल नहीं किया। फिर मैंने पूछा- “लेकिन तुम तो पढना चाहते थे ना?” जवाब आया- “हां…पढता रहता तो अभी भी पढ ही रहा होता…।” वह कहते-कहते रुक गया। मुझे लगा वह कहना चाह रहा था कि आगे पढाई न करके सूरत जाकर उसने ठीक किया। मैंने बात आगे बढाई- “क्या करते हो तुम सूरत में?” वह बोला- “सर वहां पर ब्रोकर का काम करता हूं। दुकानों से आर्डर लेता हूं…कमीशन फिक्स है। सोच रहा एक दो साल में अपनी छोटी मोटी दुकान खुद की लगा लूं।” वह ख़ुशी-ख़ुशी बता रहा था। उसकी बात में कुछ साबित करने का उतावलापन था। हालांकि वह बात करते हुए पूरी शालीनता बरत रहा था लेकिन मुझे यह विश्वास नहीं हो रहा था कि तीन साल के छोटे से समय में गोपाल को इतना सब कुछ कैसे मिल गया? और हां उसने हमारे बताये हुए रास्ते पर तो एक कदम भी नहीं रखा।
मेरे अच्छे विचार जो सुबह से मुझ पर हावी थे उनकी जगह अब गोपाल नामक वास्तविकता ने ले ली थी। लग रहा था कि हम भी तमाम गांव के युवाओं के लिए वहीं करना चाहते है जो गोपाल ने हासिल कर लिया है। लेकिन तरीकों में तो जमीन आसमान का फर्क है। गोपाल जो पढाई में ठीक ठाक लडका था । मुझे खासकर लगता था कि उसे अभी और पढना चाहिए था। पर अब सोच रहा हूं तो लग रहा है कि अगर गोपाल मेरा कहना मानकर अभी भी पढ ही रहा होता तो क्या आज जो वह हासिल कर चुका है, वह हासिल कर पाता?
मैं अभी इसी उधेडबुन में था और वह बातें किए जा रहा था। उसने कहा – “कल सूरत वापस जाना है, कुछ लडके लेकर जाना है, उनसे ही मिलने जा रहा हूं।” मुझे झटका लगा। मैं सोचने लगा- ये लो, ये तो उसी राह पर चल रहा है जिस पर सभी ठेकेदार चलते है। अब तो लडके भी ले जाने लगा है। अर्थात् हमारी किसी भी बात का कोई असर उस पर नहीं हुआ। मेरे पास कहने को कुछ भी नहीं था। तभी मेरी ओर देखकर मुस्करा कर वह बोला- “चिन्ता मत करो सर, मैं ऐसे ही लडके ले जा रहा हूं जो पढाई छोड चुके है। किसी की पढाई नहीं छुडवाउंगा…सच कह रहा हूं। आप की बातें याद है मुझे।” अचानक उसकी इस बात ने मुझे बहुत राहत दी। लेकिन अभी भी मेरे लिए यह तय करना मुश्किल हो रहा था कि गोपाल को मैं एक आदर्श युवा मानूं, जिसकी सफलता का उदाहरण दूसरों को दिया जा सके या फिर शार्ट कट से उंचाई तक पंहुचने वाला अपवाद?
खैर, बहुत सारे विचारों के साथ मैं गोपाल के साथ वहां से उठा और अपने गन्तव्य की ओर चल पडा। आगे के रास्ते में बातें और भी हुई । मैनें गोपाल को बहुत सारी हिदायतें उन लडकों के बारे में दी जिन्हें वह लेकर जाने वाला था। मुझे लगा उसने सारी बातें उसी गम्भीरता से सुनी जितनी तीन साल पहले सुनी थी।
जल्दी मिलने मिलाने के वादों के साथ उसे उसके नियत स्थान पर छोडते हुए एक प्रश्न दिमाग में था- अगर तीन साल बाद इसी रास्ते पर एक बार फिर गोपाल से फिर मिलना हुआ तो मैं उन लडकों के बारे में जरुर पूछताछ करुंगा जिन्हें वह आज लेकर जा रहा है। क्या वे सभी तब तक गोपाल बन जाऐंगे?
Kamlesh Sharma is currently based out of Udaipur and associated with Aajeevika Bureau which primarily work on migrant labourer.
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She is an illustrator based out of Jharkhand.