एक पुरानी कविता | मुझे देवों की बस्ती से क्या

मैं मजदूर हूँ मुझे देवों की बस्ती से क्या!अगणित बार धरा पर मैंने स्वर्ग बनाये, अम्बर पर जितने तारे उतने वर्षों से,मेरे पुरखों ने धरती का रूप सवारा; धरती को सुन्दर करने की ममता में,बीत चुका है कई पीढियां वंश हमारा Ι अपने नहीं अभाव मिटा पाए जीवन भर,पर औरों के सभी अभाव मिटा सकता […]

मैं मजदूर हूँ मुझे देवों की बस्ती से क्या!
अगणित बार धरा पर मैंने स्वर्ग बनाये,

अम्बर पर जितने तारे उतने वर्षों से,
मेरे पुरखों ने धरती का रूप सवारा;

धरती को सुन्दर करने की ममता में,
बीत चुका है कई पीढियां वंश हमारा Ι

अपने नहीं अभाव मिटा पाए जीवन भर,
पर औरों के सभी अभाव मिटा सकता हूँ;

युगों-युगों से इन झोपडियों में रहकर भी,
औरों के हित लगा हुआ हूँ महल सजाने Ι

ऐसे ही मेरे कितने साथी भूखे रह,
लगे हुए हैं औरों के हित अन्न उगाने;

इतना समय नहीं मुझको जीवन में मिलता,
अपनी खातिर सुख के कुछ सामान जुटा लूँ

पर मेरे हित उनका भी कर्तव्य नहीं क्या?
मेरी बाहें जिनके भरती रहीं खजाने;

अपने घर के अन्धकार की मुझे न चिंता,
मैंने तो औरों के बुझते दीप जलाये Ι

मैं मजदूर हूँ मुझे देवों की बस्ती से क्या?
अगणित बार धरा पर मैंने स्वर्ग बनाये Ι

-दिनकर

जीवनी : रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का जन्म बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया गाँव में 23 सितंबर 1908 को हुआ था। उनके पिता का नाम बाबू रवि सिंह और माता का नाम मनरूप देवी था। दिनकर जी के पिता एक किसान थे।

रामधारी सिंह ‘दिनकर’ एक प्रसिद्ध कवि और निबंधकार थे। भारत की स्वतंत्रता से पूर्व वे एक विद्रोही कवि के रूप में पहचाने जाते थे, लेकिन स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद उन्हें राष्ट्रकवि के नाम से जाना जाने लगा। उनकी कविताओं में एक ओर जहाँ वीर रस, विद्रोह और क्रांतिकारिता का भाव है, वहीं दूसरी ओर कोमल श्रृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति भी देखने को मिलती है।

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Dinkar

रामधारी सिंह ‘दिनकर’ एक प्रसिद्ध कवि और निबंधकार थे।

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