
Image source by Hyderabad Urban Lab Foundation
हम गिरेंगे
कल गिरे थे
कल गिरेंगे
आज नहीं गिर रहे कहते हुए, हम गिरेंगे
कल का गिरना
आज में ऊँचाई पाने का मकसद
आज का गिरना आज में बने रहने के लिए है
कल हम और गिरेंगे
ताकि आज और कल के बीच में भी हम बने रहे
हमारा गिरना हमेशा से नज़रंदाज़ किया जा सकता है
हमसें ज़्यादा गिरे हुए लोग और भी तो हैं,
कोई और भी गिरना बंद नहीं कर रहा, हम भी नहीं कर रहे
हम गिर रहे हैं ताकि संतुलन बना रहे
कल एक मजदूर नाली में गिरा (भौतिक गिरना, ऊपर का गिरना इससे संबंधित नहीं है)
मजदूर ज़्यादा गिरता इससे पहले ही मर गया,
इस मरने पर कुछ आवाज़ ज़िंदा हुई,
कुछ कलम ऊपर आये
कुछ टेलीविजन ने भी शोर मचाये
कुछ ने की शोक सभाएं
ये सब एक स्टेज़ पर आकर थे बोझ बढ़ाये
फिर धम से गिरे इतना गिरे, इतना गिरे
मजदूर का बेटा कह पा रहा है, मेरा बाप गिरा नहीं था मरा था
कल टेबल से एक फ़ाइल गिरी,
फिर से एक टेबल पर,
फाइल में लिखा था “जंगल में घोंसले गिर जा रहे हैं पेड़ से”
इन टेबल को कभी नहीं पसंद “गिरने की बात”
गिरने लगे हैं पेड़ ख़ुद -ब- ख़ुद कट जाने के डर से
चिड़ियों ने डर के कारण अपने अंडे को सच में गिरा कर
गिर गईं है गिरते हुए पेड़ के नीचे
पेड़ों को इस बात की तसल्ली है
मजदूर के गिरकर मरने से मुआवजा भले न मिले
हमारे कट के गिरने से हीरा ज़रूर मिलेगा
ये टेबल, ये कुर्सी, ये कलम, ये मीडिया, ये टीवी
सब गिरने की होड़ में हैं,
और हम?
हम ही तो इनके आधार हैं,
और हम गिर रहे हैं,,,
गिरने के लिए नहीं चाहिए होगा छत
नहीं सड़कों पर फेंके गए केले के छिलके
हम कुर्सी पर बैठ के गिरेंगे
हम जहाँ रहेंगे वहाँ गिरेंगे, वहीं से गिरेंगे
हम गिरते रहेंगे मानवता की सारी हदों को शर्मसार करके
इतना गिरेंगे की गिरना भी जन्मजात गुण हो जाये आने वाली पीढ़ियों के लिए |
–बोज़ो

Bozo
Sunny Kumar, known as Bozo, hails from Chadhua village, located 20 km from Muzaffarpur city in Bihar. He is a writer, storyteller, and social educator whose work captures the struggles, dreams, and resilience of everyday people. He is currently a Bargad Theatre Fellow, using theatre to engage communities and amplify social issues.